स्केल, स्किनकेयर की दुनिया में घुसे बिना काम ही नहीं रहता—हर दूसरे बंदा में "सीक्रेट टिप्स" और "मिरकल प्रोडक्ट्स" के बारे में बकबक रहता है। लेकिन असल में? इन सब में से ज्यादातर बातें फुल टाइम झूठ होती हैं। चलो, आज कुछ कड़क स्किनकेयर मित्र तोड़ते हैं—वैज्ञानिक शैली में, लेकिन थोड़े मजे के साथ।
मिथ्या 1: "महंगे प्रोडक्ट्स का मतलब शानदार स्कर्ट"
सच बताओ? ब्रांड का नाम और भारी-भरकम उत्पाद टैग देखें मत तलाशो। गुणवत्ता की गुणवत्ता नहीं है, बस ब्रांड का विपणन बजट ज़्यादा है। साधारण, सेटाफिल- सस्ता भी, शानदार भी। उत्पादों में रियल फ़िट फॉर्मूलेशन और एक्टिव इंग्रेडिएंट्स शामिल हैं, न कि ब्रांड एंबेसडर की मुस्कान से।
मिथ्या 2: "प्राकृतिक नाश्ते हमेशा सुरक्षित रहते हैं"
अबे, खरीदारी का मतलब सेफ नहीं होता. जरा सोचो, जहर भी खरीदा है—पॉइजन आइवी, किसी ने ट्राई किया क्या? ऊपर से कुछ एसेंशियल ऑयल तो स्ट्रेंथ एलर्जी दे देते हैं। कइयों बार सबसे ज्यादा सुरक्षित होते हैं, क्योंकि उनपे ढेरों का आकलन होता है।
मिथ्या 3: "त्वाचा को संसार लेना चाहिए"
ये सुन-सुन का सिरदर्द हो गया है। त्वचा का छेद नहीं है, यार! वो ऑक्सीजन ब्लड से उपलब्ध है, खुले पोर्स से नहीं। मेकअप या क्रीम बनाने से उसकी सांस नहीं रुकती। रातभर प्रोडक्ट्स लगा सकता है-कोई नहीं मरेगा।
मिथ्या 4: "बर्फ स्थापना से पोर्स खो गए हैं"
ठंडक से बस थोड़ी देर के लिए पोर्स नाखून मिलते हैं, फिर वापस वही हाल। स्थायी पोर्स आकार परिवर्तनीय? सपना है भाई, दो छोड़ो।
मिथ 5: "एक ही ब्रांड के सभी उत्पाद यूज़ करो"
सीरियसली? स्किनकेयर की कोई क्रिकेट टीम नहीं है जिसमें टीमवर्क होना चाहिए। अलग-अलग ब्रांड के बेहतरीन उत्पाद मिलाओ, कोई परेशानी नहीं। हाँ पर, त्वचा की सतह पर नज़र डाली गई—हर चीज़ मिक्स मत मारो।
मिथ्या 6: "ओयली स्केचर मत लगाओ"
ये तो सबसे बड़ा झोल है। तैलीय त्वचा भी सुखी होती है, और जब सुखती है तो अधिकतर तैलीय पदार्थ ही बनते हैं। प्रभाव, वॉटर-बेस्ड ग्रैजुएटर ट्राय करो—स्किन यूजगी।
मिथ्या 7: "पिंपल्स? बस टीनेजर्स होते हैं"
लो भाई, बड़ों के गुण अलग-अलग हैं- हॉर्मोन, स्ट्रेस, मिश्रण, सब एक के पीछे पड़े रहते हैं। तीस, चालीस, मठों के बाद भी ब्रेकआउट आ सकते हैं। स्किन एज का नाम नहीं बताया गया।
मिथ्या 8: "सनस्क्रीन सिर्फ समरसन में"
ये तो क्लासिक शब्दावली है। धूप हो या बादल, यूवी किरणें बिंदास घुसेड़ दी जाती हैं। घर के अंदर भी त्वचा पर शानदार दिखते हैं। हर मौसम में सनस्क्रीन लगाओ, बाकी बाद में पछताओगे।
मिथ्या 9: "प्रोडक्ट्स नेक्स्ट दे ही इफेक्ट डे"
एक दिन में जादू सिर्फ फिल्मों में होता है। असल जिंदगी में त्वचा को नए प्रोडक्ट्स के साथ एडजस्ट होने में 4-6 हफ्ते लगते हैं। रेटिनोल प्लेयर्स तो 3-6 महीने तक भी ले लेते हैं। पेशेंस भाई, पेशेंसेस!
मिथ्या 10: "जितने बड़े उत्पाद, स्मारक महान रिजल्ट"
स्किनकेयर कोई थाली नहीं कि कितनी चॉकलेट डालोगे, स्वाद रेटिंग। अधिकांश उत्पाद से परेशान हो जाते हैं। सिंपल रूटीन, बेस्ट रिजल्ट। आवश्यक है, डिज़ाइन ही लगाओ।
मिथ्या 11: "प्रोडक्ट्स से त्वचा का pH अंतर"
नमक खुद अपना पीएच स्केल निर्धारित करता है। ज्यादातर उत्पाद इसी तरह त्वचा के pH के हिसाब से निर्धारित होते हैं। कुछ घण्टों में स्कार्फ खुद की प्लास्टिक पट्टियाँ हैं, सामान मत लो।
मिथ्या 12: "डिटॉक्स प्रोडक्ट्स से त्वचा साफ हो जाती है"
ये नया ट्रेंड है- 'डिटॉक्स' नाम की सूची में सभी फिल्में शामिल हैं। असल में, लिवर और किडनी ही असली डिटॉक्स मशीन है। स्किन को डिटॉक्स की जरूरत ही नहीं। ऐसे प्रोडक्ट्स से बचो, बाकी जेब खाली हो जाएगी।
अब, इन सब जुगाडों से बचना है तो—
- विश्वसनीयता से संबंधित जानकारी लो, विश्वसनीयता इन्फ्लुएंसर से नहीं।
- त्वचा की बात सुनो—जिद मत करो।
- नए उत्पादों के लिए समय दो, धैर्य प्रदर्शन।
- एक बार में एक ही नई चीज़ ट्राई करो।
- पैच टेस्ट—मत भूलो, बाकी बाद में रोना।
अंत में बस यही, समुद्र तट पर दोस्ती के सागर में डूबे सितारे और दोनों की सुनो। हर किसी की त्वचा अलग है—जो मेरी त्वचा पर जादू करता है, आपकी त्वचा पर सिरदर्द हो सकता है। असली सुपरपावर? नेक्स्ट, बाकी सब हाइप है!
