बच्चों की त्वचा का मामला—ओह भाई, ये तो सच में जमानती चीज़ है! बच्चों की स्किन वैसे भी बड़ी नाज़ुक होती है, उल्टी-सीधी चीज़ों को झेलने का दम उसमें नहीं होता। और ऐसा कोई एक फॉर्मूला नहीं है, हर उम्र के बच्चे की स्किन डिमांड अलग ही ड्रामा करती है। चलो, अब फॉर्मूलों की बातें छोड़ो, सीधा बोलते हैं…
**नवजात शिशु (0-6 महीने):**
भाईसाहब, इतनी नाज़ुक स्किन कि ज़रा सा पकड़ा तो मार्क आ जाता है! नहलाना हो, तो गुनगुना पानी, और टाइम ज़्यादा नहीं—बस पांच- दस मिनट, वर्ना पूरा बच्चा छिल जाएगा। साबुन-वाबुन भी वो ही चलेगा जिसमें कोई खुशबू-फुशबू ना हो। नहाने के बाद फटाफट मॉइस्चराइज़िंग, नहीं तो विदेशी सर्दी बैठेगी ही बैठेगी। नारियल का तेल? बेस्ट है! डायपर एरिया तो जैसे युद्ध-क्षेत्र है—हर दूसरे-तीसरे घंटे बदलो, वरना रैश कहर ढा देंगे। ऊपर से जिंक ऑक्साइड वाली क्रीम लगा दी, और काम तमाम।
**6 महीने से 2 साल वाले चंचल फरिश्ते:**
अब स्किन थोड़ी मोटी हो गई, मगर घिसाई चालू। पलटना, घिसटना, और अब ठोस खाना भी आएगा तो नए-नए झमेले। धूप अगर पड़ी तो—ओ बस, मिनरल सनस्क्रीन लगा दो, वर्ना बेक्ड आलू जैसा हो सकता है। सफाई भी जरूरी, लेकिन ओवरेडिटिंग से बचो—दिन में दो बार फेस वॉश, बस, चलो आगे बढ़ो।
**2-12 साल:**
अब यहीं से असली दंगल है—स्कूल, बाहर भागदौड़, और साथ में दूसरे बच्चों की ऊलजुलूल हरकतें। अच्छा स्किन केयर रूटीन सिखाओ—सुबह-शाम फेस वॉश, हल्का मॉइस्चराइज़र, और सनस्क्रीन। हाथ धोना—मम्मी का फेवरेट डायलॉग, पर सच में जरूरी है। और भाई, नाखून साफ, पर्सनल चीजें शेयर मत करो, वरना गड़बड़ पक्की।
**किशोर (13-18):**
यहीं से तो असली ड्रामा—पिम्पल, ऑयली स्किन, हार्मोन्स की पार्टी! फेस वॉश करो एकदम जेंटली—मतलब ये नहीं कि चेहरा घिस के लाल कर दो। स्क्रबिंग बहुत हार्स ना हो—चेहरे के साथ सॉफ्ट रहना सीखो। नॉन-कॉमेडोजेनिक प्रोडक्ट्स यानि जो पोर्स ना ब्लॉक करें, बस वही चलेंगे। और हां, सनस्क्रीन प्रचारकों जैसा न लगे, मगर रोज लगाओ—मेकअप के नीचे भी। ऑयल-फ्री चीजें कहर ढा देती हैं, मज़ा आ जाता है।
**चलो, अब राखी मार के देखें कुछ कॉमन प्रॉब्लम्स:**
1. **डायपर रैश**—ज्यादा डायपर=ज्यादा रैश। समाधान? बार-बार बदलो, जिंक ऑक्साइड क्रीम खुदा है।
2. **एक्जिमा**—ये तो बस घर की चीज़, आनुवांशिक और एलर्जी से। सॉफ्ट प्रोडक्ट्स और खूब मॉइस्चराइज़र।
3. **पिंपल्स**—किशोरों के रोज़मर्रा के दुश्मन। जेंटल क्लींजिंग, और अगर ज़िद्दी हो जाएं तो डर्मेटोलॉजिस्ट की शरण लो।
4. **सनबर्न**—ये तो दिखता ही है, खासकर छुट्टियों में। कोल्ड कंप्रेस और एलोवेरा जेल—फटा-फट राहत।
**कौन सा प्रोडक्ट उठाएं, कौन सा फेंके—ये भी क्लियर कर लो:**
- **No Entry**: पैराबेंस, सल्फेट्स, आर्टिफिशियल फ्रेग्रेंस, शराब (मतलब अल्कोहल—समझे?)
- **येस ब्रदर**: नारियल तेल, शिया बटर, कैलेंडुला, चामोमाइल—ये सबने आजमा रखा है।
**मौसम के साथ भी लॉजिक बदलो—**
गर्मी में ज्यादा भारी चीज़ें छोड़ दो, हल्का मॉइस्चराइज़र, रेगुलर सनस्क्रीन, पानी पीयो खूब।
सर्दी—यहाँ मोटा मॉइस्चराइजर, चाहो तो ह्यूमिडिफायर भी, और गर्म पानी से बहुत ज्यादा नहाने की आदत छोड़ो।
**डॉक्टर कब?:**
रैश रुकने का नाम ना ले, इन्फेक्शन जैसा दिखे, घरेलू टोटके फेल हो जाएं, बच्चा खुद दर्द में हो—मत सोचो, डॉक्टर के पास भागो।
**लास्ट में, याद रखो—**
बच्चों की स्किन पर अभी से ध्यान देर में हीरा मिलेगा। हर उम्र में स्किन की गुज़र-बसर अलग है, पर नियम वही: सॉफ्ट क्लीनिंग, रेगुलर मॉइस्चराइजिंग, प्रॉपर प्रोटेक्शन। बाकी, अपने बच्चे की स्किन का दिल से ख्याल रखो—फिर देखना, प्योर स्किन=हैप्पी बचपन!
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